घुटनों को मोड़ कर व झुककर बैठना उकडूँ बैठना कहलाता है. जिसे अंग्रेजी में स्कवेट (Squat) कहते है.
जब से पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति हुई है तब से शोच करने का एक ही तरीका भारत में अपनाया गया है जिसे उकडूँ बैठना कहते है और इसी आसन में बैठ कर शोच करने के स्थान को इंडियन टॉयलेट (Indian Toilet) कहते है. सभ्यताओं के आगमन के साथ-साथ मानवों में कई परिवर्तन आये, मानव की आदते पहले से अनुशासित हो गयी, वस्त्र पहनने की शुरुआत हुई, आवास बनने लगे, कृषि व कला के क्षेत्र में मानव ने कई आविष्कार किये परन्तु शोच करने का तरीका बिलकुल नहीं बदला.
यह एक ऐसा तथ्य है जिसका एक उदहारण यह भी है कि जब शिशु माँ की कोख़ में होता है तब उसकी मुद्रा (Posture) भी ठीक यही होती है. इसलिए यह एक प्राकृतिक मुद्रा है.
यदि आप योग करते है तो आपको एक आसन के बारे में अवश्य जानकारी होगी जिसका नाम है शशांकासन. यह आसन पेट के अन्दर के अंगो की मालिश कर देता है तथा तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालता है जिसके कारण अच्छा मोशन आता है. चित्र में आप देख सकते है की 90 डीग्री के कोण पर यह आसन उकडूँ बैठक (Squat) के ठीक समान ही है.
सोलहवीं शाताब्धि में जब फ्लश टॉयलेट का आविष्कार हुआ था तब इस टॉयलेट ने कई लोगो का ध्यान अपनी और आकर्षित किया परन्तु फिर भी इसका दायरा सिमित ही था. सिंहासन की तरह दिखने वाला यह टॉयलेट कुछ समय बात आलिशान और अभिमानी दिखने का प्रतिक हो गया. अगली कुछ सदियों में यह पश्चिम में यूरोप और अमेरिका में प्रवेश कर गया. और उन्नीसवीं सदी में यह पश्चिम का आदर्श टॉयलेट बन गया. हालाँकि पूर्वी दुनिया (भारत, चीन, जापान, कोरिया) ने इसे बिलकुल भी नहीं स्वीकारा. और उकडूँ बैठक में बेठना ही सबने पसंद किया.
पिछले कुछ दशकों में, आंत सम्बंधित रोग जैसे बवासीर, पथरी, कब्ज, चिडचिडापन जैसे रोगों ने पश्चिम में अपना कब्ज़ा जमा लिया. जिसके कई कारण थे परन्तु आहार और जीवनशैली में बदलाव इन बिमारियों के मुख्य कारण थे. इसके बाद चला डॉक्टरो और वैज्ञानिकों के रिसर्च का सिलसिला, जिसमें दुनियाभर के डॉक्टर पता लगाने में जुट गए की आखिर क्या है इन बिमारियों के कारण और जब वे निष्कर्ष पर पहुंचे तो पता लगा कि पश्चिमी टॉयलेट में बेठने का तरीका लगभग इन बिमारियों का मुख्य कारण था. पश्चिमी टॉयलेट में बैठने का तरीका मानव की शरीर रचना के पुर्णतः खिलाफ था.
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