चिन्मस्तिका देवी: Devi Chhinnamasta

  चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप अद्भुत और असामान्य है। उनके इस अद्वितीय रूप का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। मस्तक का स्वयं बलिदान: देवी ने अपने ही मस्तक को काटकर उसे हाथ में थाम रखा है। उनके गले से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतीक है। तीन रक्त की धाराएँ: पहली धारा देवी के मुख में जा रही है। अन्य दो धाराएँ उनके दोनों सहायकों या दासियों के मुख में जा रही हैं, जो तृप्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। कमल पर खड़े रहना: देवी एक विशाल कमल के फूल पर खड़ी हैं, जो ब्रह्मांडीय चेतना और शुद्धता का प्रतीक है। शिव पर खड़े रहना: देवी अपने चरणों से भगवान शिव के शरीर पर खड़ी हैं, जो जड़ता (passivity) और शक्ति (energy) के सामंजस्य को दर्शाता है। आभूषण और माला: उनके गले में नरमुंडों की माला और शरीर पर साधारण आभूषण हैं, जो जीवन की क्षणभंगुरता और मृत्यु की अपरिहार्यता को दर्शाते हैं। दासी रूप में संगिनी: उनके दोनों ओर उनकी सहायक दासियाँ हैं, जो उनके दिव्य बल और शक्ति में सहयोगी हैं। पौराणिक कथा और महत्व चिन्मस्तिका देवी के इस र...

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राधा का अदभुत कृष्ण ज्ञान




एक बार कृष्ण के सखा उद्धव जी जो ज्ञान और योग सीख कर उसकी महत्ता बताने में लगे थे तब ,कृष्ण ने उन्हें एक चिट्ठी लिख कर दी जिस पर कृष्ण ने लिखा था कि " मैं अब वापस नहीं आऊंगा तुम सभी मुझे भूल जाओ और योग में ध्यान लगाओ " और कहा कि इसे ले जाकर ब्रज के लोगों को दिखाना और योग के महत्व से उन्हें परिचित करवाना | उद्धव जी के लिए परमब्रह्म का लिखा लेख वेद समान था वे उसे संभाले संभाले ब्रज में गए और कृष्ण विरह में व्याकुल राधा जी को वह पाती दिखाई , राधा रानी ने उसे पढ़े बिना गोपियों को दे दी और गोपियों ने उसे पढ़े बिना उसके कई टुकड़े कर आपस में बाँट लिया | उद्धव जी बबौखला गए , चिल्लाने लगे अरे मूर्खो इस पर जगदगुरु ने योग का ज्ञान लिखा है , क्या तुम कृष्ण विरह में नहीं हो जो उनका लिखा पढ़ा तक नहीं |
तब राधा जी ने उद्धव को समझाया
" उधौ तुम हुए बौरे, पाती लेके आये दौड़े...हम योग कहाँ राखें ? यहां रोम रोम श्याम है "
अर्थात हे उधौ कृष्ण तो यहां से गए ही नहीं ? कृष्ण होंगे दुनिया के लिए योगेश्वर यहां पर तो अब भी वो धूल में सने हर घाट वृक्ष पर बंसी बजा रहे हैं | बताओ कहाँ है विरह ? यह ज्ञान आज के युग के लिए एक मार्ग दर्शन है , जब कि हम कृष्ण को आडम्बरों में खोजते हैं |
क्यों नहीं हो पाया राधा कृष्ण का भौतिक मिलन :-
मथुरा जाते समय राधा रानी ने कृष्ण का रास्ता रोका था , मगर कृष्ण ने उन्हें समझाया था कि यदि मैं तुमसे बंध गया तो मेरे जन्म का प्रायोजन व्यर्थ चला जाएगा, जगत में पाप और अधर्म का साम्राज्य फैलता ही जाएगा | मैं प्रेमी बनकर संहार नहीं साध सकता , मैं ब्रज में रहकर युद्ध नहीं रचा सकता , मैं बांसुरी बजाते हुए चक्र धारण नहीं कर सकता | और यह सत्य भी है कि राधा से विरह के बाद कृष्ण ने कभी बांसुरी को हाथ नहीं लगाया | कृष्ण ने मथुरा जाते समय राधा से साथ चलने को कहा था , किन्तु राधा भी कृष्ण की गुरु थीं , वे समझ सकती थीं कि जिसे संसार को मोह से मुक्ति का पथ सिखाना है , उसे मोह में बाँध कर मैं समय चक्र को नहीं रोकूंगी | और उन्होंने कृष्ण से वचन लिया कि वे जब अपने जन्म -अवतार के सभी उद्देश्यों को पूर्ण कर लें तब लौट आएं , और ऐसा हुआ भी कृष्ण अपने जन्म के सभी प्रायोजनों को पूर्ण कर , और अपने अवतार के कर्तव्य से मुक्त हो सदैव राधा के हो गए | वे अब ना द्वारिका में मिलते हैं, और ना ही कुरुक्षेत्र में , वे तो आज भी ब्रज की भूमि पर राधा रानी के साथ धूल उड़ाते दौड़ते जाते हैं...दूर तक

राधे राधे🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻


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