Martyrdom of Sri Guru Tegh Bahadur

हिंदू धर्म के रक्षक श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत से एक दिन पहले उन्हें डराने के लिए चांदनी चौंक में उनके सिख भाई मति दास जी को आरे से दो टुकड़े कर दिए गए,भाई सती दस जी को रुई में लपेट जिंदा जलाया गया, भाई दयाल जी को देग में उबाल कर शहीद किया गया। उनकी शहादत को बारम्बार प्रणाम 

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चीन भारत युद्ध इतिहास एवम विफलता के कारण






चीन और भारत के बीच युद्ध का इतिहास सन 1962 का है. इस युद्ध में भारत को सैन्य हार का सामना करना पड़ा था. जिसके बहुत से कारण सामने आये. उस वक्त रक्षा बल एवं सियासी बलों के कारण भारत को हार का सामना करना पड़ा था. इसमें बहुत से सैनिक शहीद हुए. इसके परिणाम का प्रभाव भारत और चीन के लिए बहुत ही बुरा हुआ, खास कर के भारत के लिए. जिस दिन यह युद्ध शुरू हुआ उस दिन को लोग राष्ट्रीय एकता दिवस के लिए आज भी याद करते है. इस युद्ध के इतिहास, भारत की विफलता और उसका कारण यहाँ दर्शाया गया है.

भारत चीन युद्ध का इतिहास

इतिहास के पन्नो में दर्ज एक भयानक युद्ध जो भारत चीन के बीच 1962 में हुआ था. इस युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन यह युद्ध हमारे देश को कूटनीति का मतलब सिखा गया था. जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु समझ नही पाये थे. उन्होंने खुद यह बात मानी थी कि वे इसे महज एक सामान्य झगड़ा ही समझ रहे थे, जो बातचीत के जरिये समाप्त हो सकता था. उन्होंने स्पष्ट किया था कि भारत अपने ही बनाये दायरे में वास्तविक्ता से दूर था. कई हद तक हमारे सामने साक्ष्य मौजूद थे पर हमने अनदेखा किया. इस युद्ध में हार के पीछे तात्कालिक सरकार को कठघड़े में खड़ा किया गया स्वयं राष्ट्रपति श्री राधाकृष्णन ने ये आरोप सरकार पर लगाये. स्पष्ट कहा गया यह युद्ध लापरवाही का परिणाम था.

इतिहास के कई पन्ने यह भी कहते हैं कि सरदार वल्लभभाई पटेल  को हमेशा से चीन की नियत पर शक था. वे उसे मुँह पर कुछ पीठ पीछे कुछ, ऐसा संबोधित करते थे. उन्होंने खुद इस बात का जिक्र पंडित जवाहर लाल नेहरू  से किया, लेकिन नेहरू जी ने इस बात को भी अनदेखा कर दिया. शायद इन्ही लापरवाही के चलते चीन ने भारत पर आक्रमण किया और भारत को हार का मुख देखना पड़ा लेकिन चीन के इस कदम से उसकी अंतराष्ट्रीय छवि पर गहरा आघात पहुँचा.

 चीन ने भारत पर 20 अक्टूबर 1962 को आक्रमण किया, यह युद्ध 21 नवंबर तक चला. भारत को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा. 20 अक्टूबर का दिन National Solidarity Day (China attacked India on that day) के तौर पर याद रखा जाता हैं. हालाँकि चीन ने 1959 से ही भारत पर छोटे-छोटे आक्रमण शुरू कर दिए थे. सीमा पर तनातनी का माहौल गहराने लगा था. शायद इसके पीछे का करण था, कि उस वक्त भारत ने दलाई लामा को शरण दी थी और ये बात चीन को हजम नहीं हुई और उसने कहीं न कहीं युद्ध का मन बना लिया था.
भारत चीन युद्ध स्थान
भारत चीन मतभेद देश की आजादी के समय से ही चला आ रहा हैं. 1962 का युद्ध सीमा युद्ध था, लेकिन इसके पीछे कई कारण बताये जाते हैं. यह युद्ध भारत के उत्तरपूर्वी सीमा पर हुआ था. वर्तमान स्थिती के अनुसार यह क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश एवं चीन के अक्साई (रेगिस्तानी क्षेत्र ) था जहाँ यह युद्ध हुआ था. भारत चीन से नेपाल, भूटान एवं वर्तमान तिब्बत की सीमाओं से जुदा हुआ हैं इस प्रकार तीन अहम सीमायें हैं भारत एवं चीन के बीच.
भारत चीन युद्ध का परिणाम
सर्वप्रथम इस युद्ध का संकेत 1959 में हुए सीमावर्ती हमलो से मिला था. उस वक्त चीन ने लद्दाख कोंगकाला में सबसे पहले युद्ध का माहौल बनाया था जिसे भारत समझ नहीं पाया. उसके बाद 1962 में भारत के अरुणाचल प्रदेश एवम चीन के अक्साई दोनों क्षेत्रों में एक महीने तक युद्ध चला. यह युद्द ऊँची- ऊँची पहाड़ियों के बीच ज्यादा गहराया. इस युद्ध में भारत के तरफ से उचित निर्णय एवं कार्यवाही में काफी गलतियाँ हुई जिसका जिम्मेदार उस वक्त सरकार एवम अहम् मिलेट्री के ऑफिसर्स को बताया गया. 21 नवंबर को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा की. भारत को हार मिली लेकिन चीन ने भी कब्ज़ा किये क्षेत्रो को छोड़ने का ऐलान किया उसके बाद ही युद्ध खत्म हुआ. अन्तराष्ट्रीय स्तर पर चीन की छवि ख़राब हुई, और इस युद्ध से यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत की राजनीती में बहुत से अलगाव हैं. आपसी मतभेद इस युद्ध के कारन सामने आ गये और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर जाहिर होने लगे.

भारत चीन युद्ध में भारत की हार का कारण
चीन से मिली हार के कई कारण थे लेकिन आज तक उन कारणों पर खुलकर बातचीत नहीं की गई.
  • रक्षामंत्री एवं कमांडर का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार : सबसे पहले इस मामले में ऊँगली कृष्ण मेनन पर उठी जो उस समय रक्षा मंत्री थे. इनके साथ लेफ्टिनेंट जनरल बीएम कौल जो उस समय उत्तर पूर्व क्षेत्र के कमांडर थे और उन्हें यह पोस्ट रक्षामंत्री के कारण मिली थी जबकि कौल के पास इस पोस्ट के लिए जो अनुभव होना चाहिये थे वे नहीं थे. कौल को किसी भी तरह के युद्ध का कोई अनुभव नहीं था इसके बावजूद इन्हें कमांडर बनाया गया. इस बात के लिए रक्षामंत्री को जिम्मेदार ठहराया गया. इस युद्ध में कौल बीमार हो गये, लेकिन फिर भी युद्ध की जिम्मेदारी घर से पूरी की जिससे कई सैन्य अधिकारी ना खुश थे पर किसी ने इसका मुँह पर उल्लंघन नहीं किया, क्यूंकि कौल मेनन के काफी खास थे. युद्ध आगे बढ़ता गया लेकिन जब कौल और मेनन की सच्चाई सभी के सामने आई तो स्वयम राष्ट्रपति ने इसका विरोध किया और मेनन को रक्षामंत्री पद से हटाया गया. कौल के खिलाफ भी कार्यवाही की गई.
  • ख़ुफ़िया एजेंसी प्रमुखों की नाकामयाबी : मलिक जो उस वक्त ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख थे. उन्होंने चीन के भारत के प्रति व्यवहार को सही तरह से नहीं परखा. ना ही उचित नीति बना पाया. चीन के संकेतो पर ख़ुफ़िया एजेंसी ने भी कोई कदम नहीं उठाये, न ही इसके लिए सैन्यबल को पूर्व तैयारी के लिए बाध्य किया.
  • प्रधानमंत्री की लापरवाही : पंडित नेहरु उस वक्त इसी सोच में थे कि चीन युद्ध नही कर सकता क्यूंकि सोवियत संघ से उसके संबंध ख़राब हैं. इस तरह की नाफ़रमानी का परिणाम था यह बड़ा युद्ध, जिसे केवल गैर जिम्मेदाराना हरकत के कारण भारत को लड़ना पड़ा और हार का मुंह देखना पड़ा. इसमें सैन्य अधिकारीयों एवं ख़ुफ़िया एजेंसी का सबसे बड़ा हाथ था, क्यूंकि यही लोग पंडित नेहरु को वास्तविक्ता दिखा सकते थे, लेकिन उनके मुँह पर उन्हें गलत कह देने की ताकत इन लोगो में नहीं थी और इसका फायदा चीन ने आसानी से उठा लिया.
  • युद्ध में हार का कारण उचित एयरफोर्स का उपयोग ना करना भी बताया गया. अमेरिकी गुप्तचर में लिखा कि चीन के पास हवाई कार्यवाही के खिलाफ उचित प्रबंध नहीं था. अगर भारत इस बात का फायदा उठाता तो युद्ध का परिणाम भिन्न होता.
  • आखरी कारण यही तय किया गया कि भारत के पास कोई सही युद्ध नीति नहीं थी, जिसके साथ वो इस युद्ध को काबू में कर पाता.
भारत चीन युद्ध के बाद भारत में कार्यवाही
इस युद्ध के बाद भारत की सरकार को गहन आलोचना का पात्र बनाना पड़ा. राष्ट्रपति ने स्वयं सरकार की एवं रक्षाबलो की नीतियों की निंदा की. परिणाम स्वरूप रक्षामंत्री मेनन को 9 नवम्बर को पद से निरस्त किया गया. युद्ध में कई सैनिक मारे गए देश में अस्थिरता आने लगी. इस युद्ध के कारण भारत को चीन की नियत का पता चला हिंदी चीनी भाई भाई के नारे का विरोध हुआ और भारत को कूटनीति का महत्व समझ आया. हार के कारणों को पता करने के लिए कमेटी बनाई गई, जिसमे जनरल हेंडरसन ब्रुक्स एवम पी एस भगत ने उचित कार्यवाही की और कारणों को खोज कर हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट में लिखा गया. जिसे आज तक पूरी तरह सबके सामने नही रखा गया. शायद इसका कारण यही था कि इस युद्ध के अहम् कारण प्रधानमंत्री नेहरु की विफलता थी.

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