Martyrdom of Sri Guru Tegh Bahadur

हिंदू धर्म के रक्षक श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत से एक दिन पहले उन्हें डराने के लिए चांदनी चौंक में उनके सिख भाई मति दास जी को आरे से दो टुकड़े कर दिए गए,भाई सती दस जी को रुई में लपेट जिंदा जलाया गया, भाई दयाल जी को देग में उबाल कर शहीद किया गया। उनकी शहादत को बारम्बार प्रणाम 

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कर्मफल का विधान





भगवान ने नारद जी से कहा आप भ्रमण करते रहते हो कोई ऐसी घटना बताओ जिसने तम्हे असमंजस मे डाल दिया हो...
नारद जी ने कहा प्रभु अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था।
तभी एक चोर उधर से गुजरा, गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका, उलटे उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर उसे सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिल गई। थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया और उसे चोट लग गयी । भगवान बताइए यह कौन सा न्याय है।


भगवान मुस्कुराए, फिर बोले नारद यह सही ही हुआ। जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था, उसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरे ही मिलीं।
वहीं उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय के बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसे मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। अब नारद जी संतुष्ट थे |
सार :-सदा अच्छे कर्म मे ही प्रवत्त रहना चाहिए ।

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