चिन्मस्तिका देवी: Devi Chhinnamasta

  चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप अद्भुत और असामान्य है। उनके इस अद्वितीय रूप का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। मस्तक का स्वयं बलिदान: देवी ने अपने ही मस्तक को काटकर उसे हाथ में थाम रखा है। उनके गले से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतीक है। तीन रक्त की धाराएँ: पहली धारा देवी के मुख में जा रही है। अन्य दो धाराएँ उनके दोनों सहायकों या दासियों के मुख में जा रही हैं, जो तृप्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। कमल पर खड़े रहना: देवी एक विशाल कमल के फूल पर खड़ी हैं, जो ब्रह्मांडीय चेतना और शुद्धता का प्रतीक है। शिव पर खड़े रहना: देवी अपने चरणों से भगवान शिव के शरीर पर खड़ी हैं, जो जड़ता (passivity) और शक्ति (energy) के सामंजस्य को दर्शाता है। आभूषण और माला: उनके गले में नरमुंडों की माला और शरीर पर साधारण आभूषण हैं, जो जीवन की क्षणभंगुरता और मृत्यु की अपरिहार्यता को दर्शाते हैं। दासी रूप में संगिनी: उनके दोनों ओर उनकी सहायक दासियाँ हैं, जो उनके दिव्य बल और शक्ति में सहयोगी हैं। पौराणिक कथा और महत्व चिन्मस्तिका देवी के इस र...

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गुरु रविदास जयंती -Guru Ravidas Jayanti







गुरु रविदास जयंती गुरु रविदास जी के जन्मदिवस को कहा जाता है | यह माघ पूर्णिमा (January) को मनाया जाता है अर्थात माघ महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है | यह रविदासिया धर्म के लिए वार्षिक त्योहार है उस दिन गुरु रविदास जी की अमृतबानी पढ़ी जाती है | गुरु रविदास जी की निशानियों को औपचारिक रूप से बदल दिया जाता है | इस अवसर पर एक विशेष आरती होती है | सड़को पर संगीत एवं साज-बाज के साथ जुलूस निकाले जाते है | जुलूस के निकलते समय सबसे पहले सड़को की सफाई होती है और फिर पानी से साफ़-सफाई करने के बाद गुलाब के फूल की पंखुड़िया बिखेरी जाती है | इसके बाद जुलुस में प्रशाद भी बांटे जाते है | इसके आलावा भी संस्कार करने के लिए भक्त नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं |

भवनों में इनकी प्रतिमा अर्थात इनके फोटो की पूजा की जाती है | हर साल गुरु रविदास जी के जन्मदिन पर अस्थन मंदिर, सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में एक बहुत बड़ा उत्सव का आयोजन होता है और इस उत्सव को मनाने के लिए दुनियाभर से लाखों भक्त आते हैं | इस वर्ष 2018 में यह जयंती 31 जनवरी को मनाया जायगा |

रविदास जी का जन्म 14वीं सदी में सीर गोवर्धनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था | यह एक नीची जाति के परिवार में हुए थे जिसे समाज में अछूत रूप से माना जाता है | रविदास जी पहले ऐसे इंसान थे जिन्होंने भारतीयों के बुनियादी मानव अधिकार के लिए आवाज़ उठाई | वह भक्ति आंदोलन में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए और आध्यात्मिकता को पढ़ाया और भारतीय जाति व्यवस्था के पीड़ा से स्वतंत्रता पर आधारित समानता का संदेश भेजने की कोशिश की अर्थात इन्होने जाति-विवाद को पूरी तरह से ख़त्म करने की कोशिश की |

गुरु रविदास जयंती के अवसर पर हरयाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार, इन सभी राज्यों में जुलूस के साथ उत्सव मनाया जाता है | इस अवसर पर गुरुद्वारा में गुरु रविदास जी की अमृतबानी पढ़ी जाती है |




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