विदेश में पढ़ाई करके लौटने के बाद एक दिन बाबा साहब ने रमाबाई से पूछा रमा
तूने मेरी अनुपस्थित में घर परिवार को कैसे सम्भाला घर में कुछ भी नही होने
पर तूने घर परिवार का पालन पोषण कैसे किया
रमा ने इन प्रश्नो का कोई
उत्तर नही दिया वह अपना सिर झुकाए चुपचाप बैठी रही तब बाबा साहब ने यशवंत
और मुकुंद से भी यही प्रश्न किया तो दोनों बच्चों ने पूरी कहानी बता दी की
कैसे घर में अभावों की वजह से बाजरे की चार रोटी बनाती उसमे से एक एक रोटी
यशवन्त मुकुंद व् शंकर को मिलती और एक रोटी के तीन टुकड़
े
करके मीरा बुआ लक्षमी चाची व् एक टुकड़ा स्वयं रमा खाती कभी कभी चावल होने
पर उसे बिना सब्जी या दाल के चटनी व् प्याज के साथ खाती थी
कैसे
पड़ोसिनों के तानो से बचने के लिए रमा परिवार पालने के लिए मीलों पैदल चलकर
लकड़ी बीनने या तो सन्ध्या रात के अँधेरे में या सबेरे धुंधलके में जाती
ताकि कोई देख न ले नही तो पड़ोसिनें ताने मारती थी की देखो बैरिस्टर की
पत्नी लड़की बिनती फिरती ह
रमा गोबर इकट्ठा करके उसके उपले बना कर उन्हें बेचने के लिए वर्ली तक ले जाती थी और रात 9 बजे तक वापस आती थी
और बहुत सारी बातें उन्होंने बाबा साहब को बताई घर की दुखभरी कहानी सुनकर
बाबा साहब अपने अध्ययन कक्ष में चले गए तथा दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया वे
रमाई की दुखभरी कहानी सुनकर बहुत ही भाव विव्हल हो गए व् घण्टो चुपचाप
अकेले बन्द कमरे में आंसू बहाते रहे रमाई उनकी पत्नी नही बल्कि करुणा की
देवी थी उन्हें ये सब परिवार को गरीबी व् भुखमरी से बचाने के लिए किया रमाई
ने स्वयं दारुण दुःख भोगे परन्तु परिवार को टूटने व् कष्ट नही होने दिया
व् न ही कभी अपने पत्रों में दुःख की कहानी लिखी वह जानती थी की पति विदेश
में ह यदि उन्हें मेरे दुखों का पता चला तो उनके अध्ययन में बाधा पड़ सकती ह
रमा दुखों को कड़वी दवा समझकर पीती रही पर किसी के समक्ष उन्हें उजागर नही
किया
सन्दर्भ ग्रन्थ पूज्य माता रमाई आंबेडकर
ऐसी थी माता रमा
उनके विश्वास और त्याग से बाबा साहब पढ़े और बाबा साहब के ज्ञान त्याग और
संघर्ष से हम पढ़े अब हमें हमारी जिम्मेदारी निभानी ह ताकि माता रमाई का
त्याग और बाबा साहब के संघर्ष की कहानी हर मन मस्तिस्क में एक हलचल पैदा
करदे बाबा साहब के सपनों का भारत हम बना सके
माता रमा बाई के जन्मदिन ( 7 फ़रवरी 1898 ) की आपको हार्दिक मंगलकामनाएं
भवतु सब्ब मंगलम्
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