चिन्मस्तिका देवी: Devi Chhinnamasta

  चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप अद्भुत और असामान्य है। उनके इस अद्वितीय रूप का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। मस्तक का स्वयं बलिदान: देवी ने अपने ही मस्तक को काटकर उसे हाथ में थाम रखा है। उनके गले से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतीक है। तीन रक्त की धाराएँ: पहली धारा देवी के मुख में जा रही है। अन्य दो धाराएँ उनके दोनों सहायकों या दासियों के मुख में जा रही हैं, जो तृप्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। कमल पर खड़े रहना: देवी एक विशाल कमल के फूल पर खड़ी हैं, जो ब्रह्मांडीय चेतना और शुद्धता का प्रतीक है। शिव पर खड़े रहना: देवी अपने चरणों से भगवान शिव के शरीर पर खड़ी हैं, जो जड़ता (passivity) और शक्ति (energy) के सामंजस्य को दर्शाता है। आभूषण और माला: उनके गले में नरमुंडों की माला और शरीर पर साधारण आभूषण हैं, जो जीवन की क्षणभंगुरता और मृत्यु की अपरिहार्यता को दर्शाते हैं। दासी रूप में संगिनी: उनके दोनों ओर उनकी सहायक दासियाँ हैं, जो उनके दिव्य बल और शक्ति में सहयोगी हैं। पौराणिक कथा और महत्व चिन्मस्तिका देवी के इस र...

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जानिए क्यो मनाई जाती है बैसाखी



बैसाखी (baisakhi) उतर भारत विशेषकर पंजाब और हरियाणा मे मनाए जाने के वाला एक विशेष त्योहार है। इसे  “वैसाखी” भी कहा जाता है . केरल मे इस त्योहार को ‘विशु’ कहा जाता है। इसे खेती का त्योहार भी कहा जाता है। बैसाखी (baisakhi) हर साल 13 अप्रैल को धूमधाम से मनाई जाती है। वैसे तो इस त्योहार को मनाने की कोई एक वजह नहीं है। पंजाब और हरियाणा मे यह एक आध्यात्मिक त्योहार है तो किसानो के लिए फसल  कटने के उल्लास में मनाए जाने वाला एक विशेष त्योहार।


1) खालसा पंथ की स्थापना – सिक्खो के लिए इस त्योहार का एक बड़ा महत्व है। सिखों के दसवें  गुरु – गुरु गोबिन्द सिंह जी  ने वर्ष 1699 मे इसी (baisakhi) दिन ही गुरुद्वारा आनंदपुर साहिब में में खालसा पंथ की स्थापना की थी। ‘खालसा’  खालिस शब्द से बना है जिसका मतलब है – शुद्ध, पावन या पवित्र । इसके पीछे गुरु गोबिन्द सिंह जी का मुख्य उदेश्य लोगों को तत्कालीन शासकों के अत्याचारों और जुल्मो से मुक्त करके लोगो की  ज़िंदगी मे सुधार लाना था। इसके द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह जी ने लोगों को जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव छोड़कर इसके स्थान पर धर्म और नेकी  की राह दिखाई।



2) किसानो के लिए महत्व – किसानो के लिए बैसाखी (baisakhi) का  दिन रबी की फसल  पकने की खुशी के रूप मे मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा मे  जब  रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है तब यह पर्व धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन गेहूं, तिलहन और गन्ने की फसल काटने की शुरुआत होती है। लोग मंदिर और गुरुद्वारे मे जाकर भगवान को धन्यवाद करते है।


3) हिन्दुओ के लिए महत्व – पोराणिक कथाओ के अनुसार इसी दिन देवी गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थी। इसलिए इस दिन लोग गंगा नदी मे पवित्र स्नान करते है।


4) स्वधिनता और बैसाखी (baisakhi) – 13 अप्रैल 1919  को हजारो लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में  पंजाब के अमृतसर मे स्थित जलियाँवाला बाग में एकत्र हुए थे। जनरल डायर ने इसी दिन हजारो लोगो पर अंधादुंद गोलियां बरसाई और हजारो लोगो को मार डाला। इस घटना ने  देश की आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की। इसी घटना ने ही भगत सिंह को अंगेजों के विरूद्ध खड़े होने के लिए प्रेरित किया।

















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