बैसाखी (baisakhi) उतर भारत विशेषकर पंजाब और हरियाणा मे मनाए जाने के
वाला एक विशेष त्योहार है। इसे “वैसाखी” भी कहा जाता है . केरल मे इस
त्योहार को ‘विशु’ कहा जाता है। इसे खेती का त्योहार भी कहा जाता है।
बैसाखी (baisakhi) हर साल 13 अप्रैल को धूमधाम से मनाई जाती है। वैसे तो इस
त्योहार को मनाने की कोई एक वजह नहीं है। पंजाब और हरियाणा मे यह एक
आध्यात्मिक त्योहार है तो किसानो के लिए फसल कटने के उल्लास में मनाए जाने
वाला एक विशेष त्योहार।
1) खालसा पंथ की स्थापना – सिक्खो के लिए इस त्योहार का एक बड़ा महत्व है। सिखों के दसवें गुरु –
गुरु गोबिन्द सिंह जी
ने वर्ष 1699 मे इसी (baisakhi) दिन ही गुरुद्वारा आनंदपुर साहिब में
में खालसा पंथ की स्थापना की थी। ‘खालसा’ खालिस शब्द से बना है जिसका मतलब
है – शुद्ध, पावन या पवित्र । इसके पीछे गुरु गोबिन्द सिंह जी का मुख्य
उदेश्य लोगों को तत्कालीन शासकों के अत्याचारों और जुल्मो से मुक्त करके
लोगो की ज़िंदगी मे सुधार लाना था। इसके द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह जी ने लोगों को जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव छोड़कर इसके स्थान पर धर्म और नेकी की राह दिखाई।
2) किसानो के लिए महत्व – किसानो के लिए बैसाखी
(baisakhi) का दिन रबी की फसल पकने की खुशी के रूप मे मनाया जाता है।
पंजाब और हरियाणा मे जब रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है तब यह पर्व धूम
धाम से मनाया जाता है। इस दिन गेहूं, तिलहन और गन्ने की फसल काटने की
शुरुआत होती है। लोग मंदिर और गुरुद्वारे मे जाकर भगवान को धन्यवाद करते
है।
3) हिन्दुओ के लिए महत्व – पोराणिक कथाओ के अनुसार इसी दिन देवी गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थी। इसलिए इस दिन लोग गंगा नदी मे पवित्र स्नान करते है।
4) स्वधिनता और बैसाखी (baisakhi) – 13 अप्रैल 1919 को हजारो लोग
रॉलेट एक्ट
के विरोध में पंजाब के अमृतसर मे स्थित जलियाँवाला बाग में एकत्र हुए थे।
जनरल डायर ने इसी दिन हजारो लोगो पर अंधादुंद गोलियां बरसाई और हजारो लोगो
को मार डाला। इस घटना ने देश की आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान
की। इसी घटना ने ही भगत सिंह को अंगेजों के विरूद्ध खड़े होने के लिए
प्रेरित किया।
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