शारीरिक आत्मनिर्भर : हर बेटी की जरुरत





श्रद्धा शर्मा - चंडीगढ़: औरत को एक मां, बेटी, बहन, पत्नी और न जाने किन-किन रूपों में देखा जाता है हमारे समाज में औरत को देवी का दर्जा दिया गया है। एक तरफ जहाँ हमारा समाज मंदिरों में जा कर देवी  के विभिन्न रूपों की पूजा अर्चना भी करता है, वहीँ दूसरी तरफ आज के युग में यही औरत के रूप में जन्मी देवी हैवानित का शिकार बन रही है। नवरात्रों के समय जिस कन्या को कंजक के रूप में पूजते है बाद में उसी कन्या के साथ दुराचार भी करते है। औरतों से जुड़े सामाजिक मुद्दे आज के दौर में किसी से छिपे हुए नहीं हैं और काफी वर्षो से चलते आ रहे हैं। समाज की इतनी कोशिशों के बाद भी इनका खात्मा नहीं किया हो पाया है।
  आज से कुछ साल पहले दिल्ली में हुए निर्भया कांड ने पूरे देश कोहिला के रख दिया था...दिल्ली में हुए इस घिनौनी वारदात के दोषियों को सजा देकर निर्भया को न्याय मिला साथ ही इस सजा से यह उम्मीद भी बंधी कि अब से कोई भी ऐसी घिनौनी वारदात करने कि हिम्मत तक नहीं करेगा। लेकिन क्या कभी किसी ऐसे मामलों को जड़ से खत्म करने के बारे में सोचा है। हमारे समाज के कुछ पुरुष सोचते है कि औरतें शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से कमजोर है जिसका फायदा वह अकसर उठा जाते है चाहे सामने निर्भया हो या कोई और तब उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे समाज में एक तथ्य यह भी सच है कि पुरुष को बिगाड़ने में भी औरत का हाथ है.. एक मां हमेशा अपने पुत्र की गलतियों पर पर्दा डालती है, एक पत्नी हमेशा अपने पति की गलतियों को नज़रअंदाज़ करेगी और यदि उसके पु्त्र ने किसी लड़की के साथ छेड़ छाड़ कर दी तो लड़की के चालचलन पर उंगली उठायेगी,,, एेसे में पुरुष तो सुधरने से रहे..कहा गया है कि यदि हम किसी को सुधार नहीं सकते तो खुद में तो बदलाव ला सकते है। यदि पुरुष बदल नहीं सकते तो लड़कियां तो इतनी सक्षम हो सकती है कि बिना किसी की सहायता के अपनी रक्षा खुद कर सकें।  
आज  हमारे समाज में सरकार ने लड़कियों व औरतों कि  सुरक्षा के लिए कई योजनाएं चलाई है यही नहीं कई एन.जी.ओ  भी  लड़कियों की सुरक्षा को लेकर कार्य कर रही है इन सब के बाद क्या कभी किसी ने यह सोचा है की ना तो लोग बदल रहें हैं और ना ही महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार रुकने का नाम ले रहे है... समाज ने कई एेसी लड़कियां या औरतें भी हैं जो खुद पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ कुछ नहीें बोलती और न जाने कई सालों से उन्हे अकेली ही सहती आ रही है..जो लड़कियां अपने ही घरों में सुरक्षित नहीं उनका क्या... एेसी लड़कियां ना तो समाज में आगे आकर कुछ बोल नहीं पाती और ना ही सही तरीके से जी पाती है.. इतना सब हो जाने के बाद भी उन्हे अपने परिवार और  खुुद से जुड़े रिश्तों की ही चिंता रहती है... सोचने की बात तो है कि अगर औरत जात उन सबके बारे में सोच सकती है तो पुरुष क्यों नही... शायद इसलिए क्योंकि पुरुष को जन्म से ही यही सिखाया जाता है कि उसे किसी से भी डरने की जरुरत नहीं है। और उसे हर तरह से औरत की रक्षा करनी होगी क्योंकि औरत पूर्ण रुप से उस पर निर्भर है..... उसी तरह औरत को भी यही सिखाया जाता है कि उसकी रक्षा पुरुष ही करेगा- पहले पिता, फिर भाई, फिर पति और फिर बेटा। इस सबके चलते कभी औरत ने यह नहीं सोचा कि हमारे समाज में रानीलक्ष्मी जैसी कई महान वीरांगना हुई है जिन्हे अपनी आत्मरक्षा के लिए किसी के सहारे की जरुरत नहीं पड़ी....जब वह अपनी रक्षा खुद कर सकते है तो हम क्यों नहीं बस कमी है तो एक कुशल प्रशिक्षण की है...
 हमारे समाज में आज हर तरह से औरतों को अपने पैरों परखड़ा होने पर बल दिया जा रहा है पर कोई यह नहीं जानता कि वित्तीय रूप से आत्मनिर्भरता होने के साथ एक औरत का शारीरिक आत्मनिर्भर होना कितना आवश्यक है। जब कोई भी पुरूष किसी महिला को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है या उसका शोषण करता है तो उसे इस बात का आभास पहले से ही होता है कि वह शारीरिक रूप से कमजोर है, तभी तो वह इस तरह का घिनौना अपराध करने की हिम्मत करता है। अगर पुरूष इस बात का पता है कि सामने वाली महिला  उससे अपना बचाव कर सकती है और जरूरत पड़ने पर पलटवार भी कर सकती है तो वह इस तरह का कुछ करने का खयाल भी अपने दिमाग में नहीं लाएगा। आज के समय में एक औरत का शारीरिक रूप से आत्मनिर्भर होना उतना ही जरूरी है जितना वित्तीय रूप से, क्योंकि एक शारीरिक रूप से आत्मनिर्भर औरत किसी भी तरह की कोई भी समस्या का सामना कर सकती है वहीं दूसरी तरफ वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर औरतें अपने बचाव के लिए हमेशा दूसरों पर निर्भर रहती है। कहने का अभिप्राय यह है कि हर लड़की को स्कूली तौर से आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देना अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि जिस समय वह अपनी उम्र के उस दौर पर पहुँचे जहाँ उसे इन सब परेशानियों का सामना करना पड़े तो वह इतनी सक्षम हो जाएं कि उन समस्याओं का या उन परिस्थितियों का मुकाबला अकेले और डट करकर पाए। उस समय वह इतनी सक्षम होनी चाहिए की उसे आत्मरक्षा करने के लिए किसी की ओर मदद भरी नजरों से देखने की जरूरत ना पड़े।  और यदि यह सब वास्वत में होने लग जाए तो ऐसे पुरूष भी लड़कियों का शोषण करने से पहले सौ बार सोचेंगे। ऐसा तभी संभव है जब सरकार इन मुद्दों पर खेल-खेलने की जगह अगर लड़कियों को स्कूली स्तर से ही आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देने का केवल सोचें ही नहीं बल्कि इस पर काम भी करें। जब इस देश की सरकार महिला बचाव से जुड़े हर संभव प्रयास तो कर ही रही हैं तो लड़कियों के लिए आत्मरक्षा का प्रशिक्षण अनिवार्य कर ही सकती है।
किसी ने क्या खूब लिखा है- उठो द्रौपदी वस्त्र संभालो,  अब ना गोविंद आएगें !
                                      छोड़ो मेहंदी भुजा संभालों,  खुद ही अपना चीर बचा लो !!
                                     जाल बिछाए बैठे शकुनि  मस्तक सब बिक जाएंगे !
                                     उठो द्रौपदी वस्त्र संभालो  अब ना गोविंद आएगें !!
                                     कब तक आस लगाओगी, तुम बिके हुए गलियारों से !
                                      कैसी रक्षा मांग रही हो, दुशासन दरबारों से!!
                                     खुद जो लज्जा हीन पड़े है, वो क्या लाज बचाएंगे !
                                      उठो द्रौपदी वस्त्र संभालो, अब ना गोविंद आएगें  !!

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