सफलता की कहानी अशोक मित्तल की जुबानी

अशोक मित्तल: मिठाई से बुलंद पढ़ाई


 
विभाजन के समय परिवार पाकिस्तान से हिंदुस्तान आया. यहां मिठाई के शुरुआती बिजनेस और ऑटोमोबाइल की डीलरशिप में सफलता की कहानी लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के पंजाब की पहली निजी यूनिवर्सिटी बनने तक पहुंच गई. सफलता के इस सफर में आगे कई मुकाम और भी हैं।
अशोक मित्तल के पिता बलदेव राज मित्तल 1947 में पाकिस्तान के सियालकोट से जालंधर आए और यहां रक्षा ठेकेदार का काम करने लगे. बाधाओं को तोड़कर नई ऊंचाइयां छूना अशोक मित्तल के खून में है और यह गुण उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है. वे मुस्कराकर कहते हैं, ''हमारा परिवार कभी भी प्रयोग करने और नए रास्तों पर चलने का जोखिम उठाने से नहीं बचता था.''

बलदेव राज ने 1961 में अपने एक मित्र से 500 रु. का कर्ज लेकर जालंधर में मिठाई की दुकान खोली, जिसका नाम रखा लवली स्वीट्स. उसके बाद की कहानी अपने आप में एक इतिहास है. अशोक कहते हैं, ''उन दिनों मिठाई की दुकानें चारों तरफ से खुली होती थीं. उन्होंने साफ-सफाई के लिहाज से उसे ढकने के बारे में सोचा. हमारे उत्पादों के खास स्वाद, श्रेष्ठता और गुणवत्ता ने पहले ही दिन से लवली स्वीट्स को लोकप्रिय बना दिया. 1969 तक शहर में हमारी तीन दुकानें हो गईं थीं.'' हालांकि यहां तक पहुंचना भी आसान नहीं था. अशोक उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, ''मेरे पिता हमेशा कहा करते थे कि सफलता कभी एक दिन में नहीं आती. किसी व्यक्ति को एक ऊंचे मुकाम तक पहुंचने के लिए बिना रुके और बिना थके लगातार मेहनत करनी होती है. अगर कोई दिन्न्कत आती भी थी तो पिता उसकी तह तक जाकर और बाकायदा एक रणनीति बनाकर उसे दूर करने की कोशिश करते थे.''
कारोबार के बारीक गुर सीखने के लिए अशोक हमेशा अपने पिता के साथ-साथ रहते थे. परिवार ने 1991 में बजाज स्कूटर की डीलरशिप के लिए आवेदन किया. मित्तल बताते हैं कि बजाज ने पहले तो उनके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बजाज की हालत इतनी भी खराब नहीं है कि वे लड्डू बेचने वालों को अपनी डीलरशिप सौंप दें. बजाज किसी भी स्थिति में मित्तल परिवार को डीलरशिप देने के लिए तैयार नहीं था. अशोक कहते हैं, ''मैं उनकी उलझन समझ सकता था. वे कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि मिठाई की दुकान चलाने वाला कोई परिवार इतना सक्षम हो सकता है कि ऑटोमोबाइल के व्यवसाय में आने के बारे में सोचे.''

मित्तल बताते हैं, ''बजाज वाले जब जालंधर आए और हमसे बात की, तब उन्हें हमारी कारोबारी क्षमता का पता चला और आखिरकार उन्होंने हमें डीलरशिप देने का फैसला किया.'' यह उनके लिए बहुत बड़ी सफलता थी. मित्तल बताते हैं, ''इस सफलता से हमारा आत्मविश्वास बहुत मजबूत हो गया. हमें लगा कि अगर लगन से कोशिश की जाए तो हर सपना पूरा हो सकता है.''
इसके बाद परिवार को 1996 में मारुति कार की डीलरशिप मिल गई, जिसने पंजाब में चैपहिया वाहनों के कारोबार का नक्शा ही बदलकर रख दिया. वे कहते हैं, ''समय के साथ हम पंजाब में ऑटोमोबाइल्स के कारोबार में अव्वल हो गए. बाद में उत्तर भारत और फिर समूचे भारत में हम पहले स्थान पर पहुंच गए.''

बिजनेस में सफल होने के बाद परिवार की यह इच्छा थी कि समाज की बेहतरी के लिए कोई बड़ा काम किया जाए. लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) की स्थापना का फैसला इसी चाहत का नतीजा था. मित्तल याद करते हैं कि एलपीयू खोलने से पहले उन्होंने और कई प्रोजेक्ट के बारे में सोचा था. वे कहते हैं, ''हम लोग धर्मशाला, मंदिर और वृद्धाश्रम आदि खोलने के बारे में सोच रहे थे. फिर हमें समझ में आया कि आखिरकार शिक्षा ही लोगों को ऊपर उठाती है. हम स्कूल नहीं खोलना चाहते थे क्योंकि भारत में उस वन्न्त निजी स्कूलों का तंत्र पहले से ही काफी मजबूतहो चुका था. यूनिवर्सिटी खोलने का एक औचित्य बनता था क्योंकि उच्च शिक्षा में अभी ठहराव नहीं आया था.'' साथ ही हम ऐसी यूनिवर्सिटी बनाना चाहते थे, जो सिर्फ डिप्लोमा और डिग्री ही नहीं देती, बल्कि वहां से पढऩे के बाद स्टुडेंट बाहर की दुनिया में सिर उठाकर चलते, पारंपरिक रास्ता चुनने की बजाए अपनी नई राह बनाने की कोशिश करते. वे चीजों को स्वीकार करने की बजाए उन पर सवाल करते और खुद अपने नतीजों पर पहुंचते. मित्तल कहते हैं, ''सफलता के जिस मुकाम पर हम पहुंच गए थे, उसके बाद यह जरूरी था कि हम युवाओं और आने वाली पीढिय़ों के समग्र विकास के लिए ठोस कदम उठाएं.''
समूह ने 2001 में अपना संस्थान खोला और उसे पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी (पीटीयू) से संबद्ध करा दिया. पहले ही सेमेस्टर में इस संस्थान के छात्र शीर्ष तीन स्थानों पर रहे.

मित्तल कहते हैं, ''हमें ऐसा लगा कि प्रचलित पाठ्यक्रम और पढ़ाने का तरीका बहुत पुराना हो चुका है और जब तक हमारे पास अपनी एक यूनिवर्सिटी नहीं होगी, तब तक हम इसे अपने मुताबिक बदल भी नहीं पाएंगे. इसलिए 2003 में हमने पंजाब सरकार से अपील की कि हमें यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया जाए.''

एलपीयू को 2005 में यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया और वह पंजाब की पहली निजी यूनिवर्सिटी बन गई, जो आज 35 देशों से आए 30,000 से ज्यादा छात्रों को शिक्षा दे रही है. वे कहते हैं, ''हमारे लिए मामला आंकड़ों का नहीं है, बल्कि स्तर और गुणवत्ता का है. शुरुआत से ही एलपीयू का उद्देश्य शिक्षा का कायाकल्प करना और अपने छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का कौशल प्रदान करना रहा है.''

तकरीबन 600 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ यूनिवर्सिटी का विशालकाय कैंपस है, जहां 3,500 से ज्यादा एकेडमिक स्टाफ काम करता है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त इस यूनिवर्सिटी में डिप्लोमा और ग्रेजुएशन से लेकर डॉक्टरेट तक के 200 से ज्यादा कोर्स संचालित होते हैं. अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सिंगापुर, ब्राजील, पोलैंड, स्विट्जरलैंड, चीन और स्पेन की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के साथ एलपीयू की साझेदारी है. अशोक कहते हैं, ''हमारा सिर्फ किताबी पढ़ाई में विश्वास नहीं है. यहां पढ़ाई के साथ खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी ध्यान दिया जाता है.''

एलपीयू का मानना है कि शिक्षा का मकसद सिर्फ अपने जीवन और प्रोफेशन में सफलता हासिल करना नहीं है. समाज से हमें जो मिला है, उसे किसी न किसी रूप में समाज को लौटाना जरूर चाहिए. एलपीयू ने अपने कैंपस के आसपास के 50 से ज्यादा गांवों को गोद ले रखा है, जहां वे स्वास्थ्य और शैक्षणिक शिविर लगाते हैं. इसके अलावा यह समूह लुधियाना जेल के कैदियों को बेकिंग और नमकीन बनाने की विशेष ट्रेनिंग भी देता है. समूह रीटेल के क्षेत्र में उतरने की भी योजना बना रहा है, जिसके तहत देश भर में लवली ब्रांड की दुकानें खुलेंगी. अशोक कहते हैं, ''हमारे यहां रचनात्मकता, आजादी और खुलापन है. हम चाहते हैं कि इतनी जगह हमेशा हो कि शिक्षकों, छात्रों और सभी लोगों के बीच संवाद की गुंजाइश बनी रहे.''

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