कुतुब मीनार
कुतुब मीनार लाल और बफ सेंड स्टोन से बनी भारत की सबसे ऊंची मीनार है।
13वीं शताब्दी में निर्मित यह भव्य मीनार राजधानी,
दिल्ली में खड़ी है। इसका व्यास आधार पर 14.32 मीटर और 72.5 मीटर की
ऊंचाई पर शीर्ष के पास लगभग 2.75 मीटर है। यह प्राचीन भारत की वास्तुकला
का एक नगीना है।
इस संकुल में अन्य महत्वपूर्ण स्मारक हैं जैसे कि 1310
में निर्मित एक द्वार, अलाइ दरवाजा, कुवत उल इस्लाम मस्जिद; अलतमिश,
अलाउद्दीन खिलजी तथा इमाम जामिन के मकबरे; अलाइ मीनार सात मीटर ऊंचा लोहे
का स्तंभ आदि।
गुलाम राजवंश के कुतुब उद्दीन ऐबक ने ए. डी. 1199 में
मीनार की नींव रखी थी और यह नमाज़ अदा करने की पुकार लगाने के लिए बनाई गई
थी तथा इसकी पहली मंजिल बनाई गई थी, जिसके बाद उसके उत्तरवर्ती तथा दामाद
शम्स उद्दीन इतुतमिश (ए डी 1211-36) ने तीन और मंजिलें इस पर जोड़ी। इसकी
सभी मंजिलों के चारों ओर आगे बढ़े हुए छज्जे हैं जो मीनार को घेरते हैं
तथा इन्हें पत्थर के ब्रेकेट से सहारा दिया गया है, जिन पर मधुमक्खी के
छत्ते के समान सजावट है और यह सजावट पहली मंजिल पर अधिक स्पष्ट है।
कुवत उल इस्लाम मस्जिद मीनार के उत्तर - पूर्व ने स्थित
है, जिसका निर्माण कुतुब उद्दीन ऐबक ने ए डी 1198 के दौरान कराया था। यह
दिल्ली के सुल्तानों द्वारा निर्मित सबसे पुरानी ढह चुकी मस्जिद है।
इसमें नक्काशी वाले खम्भों पर उठे आकार से घिरा हुआ एक आयातकार आंगन है
और ये 27 हिन्दु तथा जैन मंदिरों के वास्तुकलात्मक सदस्य हैं, जिन्हें
कुतुब उद्दीन ऐबक द्वारा नष्ट कर दिया गया था, जिसका विवरण मुख्य पूर्वी
प्रवेश पर खोदे गए शिला लेख में मिलता है। आगे चलकर एक बड़ा अर्ध गोलाकार
पर्दा खड़ा किया गया था और मस्जिद को बड़ा बनाया गया था। यह कार्य शम्स
उद्दीन इतुतमिश ( ए डी 1210-35) द्वारा और अला उद्दीन खिलजी द्वारा किया
गया था। इसके आंगन में स्थित लोहे का स्तंभ चौथी शताब्दी ए डी की
ब्राह्मी लिपि में संस्कृत के शिला लेख दर्शाता है, जिसके अनुसार इस
स्तंभ को विष्णु ध्वज (भगवान विष्णु के एक रूप) द्वारा स्थापित किया
गया था और यह चंद्र नाम के शक्ति शाली राजा की स्मृति में विष्णु पद नामक
पहाड़ी पर बनाया गया था। इस स्तंभ के ऊपरी सिरे में एक गहरी खांच दिखाई
देती है जो संभव तया गरूड़ को इस पर लगाने के लिए थी।
इतुतमिश (1211-36 ए डी) का मकबरा ए डी 1235 में बनाया गया
था। यह लाल सेंड स्टोन का बना हुआ सादा चौकोर कक्ष है, जिसमें ढेर सारे
शिला लेख, ज्यामिति आकृतियां और अरबी पैटर्न में सारसेनिक शैली की लिखावटे
प्रवेश तथा पूरे अंदरुनी हिस्से में दिखाई देती है। इसमें से कुछ नमूने
इस प्रकार हैं: पहिए, झब्बे आदि हिन्दू डिज़ाइनों के अवशेष हैं।
अलाइ दरवाजा, कुवात उल्ल इस्माल मस्जिद के दक्षिण द्वार
का निर्माण अला उद्ददीन खिलजी द्वारा ए एच 710 ( ए डी 1311) में कराया गया
था, जैसा कि इस पर तराशे गए शिला लेख में दर्ज किया गया है। यह निर्माण और
सजावट के इस्लामी सिद्धांतों के लागू करने वाली पहली इमारत है।
अलाइ मीनार, जो कुतुब मीनार के उत्तर में खड़ी हैं, का
निर्माण अला उद्दीन खिलजी द्वारा इसे कुतुब मीनार से दुगने आकार का बनाने
के इरादे से शुरू किया गया था। वह केवल पहली मंजिल पूरी करा सका, जो अब 25
मीटर की ऊंचाई की है। कुतुब के इस संकुल के अन्य अवशेषों में मदरसे,
कब्रगाहें, मकबरें, मस्जिद और वास्तुकलात्मक सदस्य हैं।
यूनेस्को को भारत की इस सबसे ऊंची पत्थर की मीनार को विश्व विरासत घोषित किया है।
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