चिन्मस्तिका देवी: Devi Chhinnamasta

  चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप अद्भुत और असामान्य है। उनके इस अद्वितीय रूप का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। मस्तक का स्वयं बलिदान: देवी ने अपने ही मस्तक को काटकर उसे हाथ में थाम रखा है। उनके गले से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतीक है। तीन रक्त की धाराएँ: पहली धारा देवी के मुख में जा रही है। अन्य दो धाराएँ उनके दोनों सहायकों या दासियों के मुख में जा रही हैं, जो तृप्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। कमल पर खड़े रहना: देवी एक विशाल कमल के फूल पर खड़ी हैं, जो ब्रह्मांडीय चेतना और शुद्धता का प्रतीक है। शिव पर खड़े रहना: देवी अपने चरणों से भगवान शिव के शरीर पर खड़ी हैं, जो जड़ता (passivity) और शक्ति (energy) के सामंजस्य को दर्शाता है। आभूषण और माला: उनके गले में नरमुंडों की माला और शरीर पर साधारण आभूषण हैं, जो जीवन की क्षणभंगुरता और मृत्यु की अपरिहार्यता को दर्शाते हैं। दासी रूप में संगिनी: उनके दोनों ओर उनकी सहायक दासियाँ हैं, जो उनके दिव्य बल और शक्ति में सहयोगी हैं। पौराणिक कथा और महत्व चिन्मस्तिका देवी के इस र...

News

kuch to hai

  *यदि कोई व्यक्ति, किसी दूसरे व्यक्ति को मित्र बना कर उस से लाभ ले रहा हो, तो समझ लेना चाहिए, कि लाभ लेने वाला अपने उत्तम व्यवहार के कारण उससे लाभ ले रहा है, न कि सगा संबंधी होने के कारण।*
      आपने कई बार ऐसा सुना होगा कि *यह मेरा मित्र है। इतना अच्छा मित्र है, सगे भाई से भी बढ़कर।* इस वाक्य का यह अभिप्राय है, कि *यह व्यक्ति मुझे सगे भाई से भी अधिक सहयोग देता है।*
        सगा भाई भी सहयोग देता है। वह तो स्वभाव से ही देता है। हम भाई को सहयोग देते हैं। भाई हमें सहयोग देता है। दोनों एक दूसरे को सहयोग देते है। हम दोनों खून का रिश्ता मानते हैं, इसलिए सहयोग देते हैं। यह तो स्वाभाविक है। परंतु कोई दूसरा व्यक्ति, जो हमारा भाई नहीं है, चाचा नहीं है, मामा नहीं है। उससे हमारा खून का कोई रिश्ता नहीं है, फिर भी यदि वह हमको बहुत अधिक सहयोग देता है। तो प्रश्न उठता है कि वह हमें सहयोग क्यों देता है? *जबकि हमारा उससे कोई खून का रिश्ता भी नहीं है। फिर भी यदि कोई हमें सहयोग दे रहा है, तो इसका अर्थ निश्चित रूप से यह समझना चाहिए कि *वह एक अच्छा व्यक्ति है, बुद्धिमान है, हमारे उत्तम व्यवहार से वह प्रभावित है। उसके साथ हमारे गुण कर्म स्वभाव मेल खाते हैं। इसलिये खून का रिश्ता न होते हुए भी वह हमें सहयोग देता है।*
        जो व्यक्ति हमारे उत्तम गुण कर्म स्वभाव से प्रभावित नहीं है, हमें अच्छा नहीं मानता, जिसके साथ हमारे विचार एवं गुण कर्म स्वभाव नहीं मिलते, वह व्यक्ति हमें सहयोग नहीं देता। यहां तक कि अपने सगे रिश्तेदार भी विचार एवं गुण कर्म स्वभाव न मिलने पर सहयोग नहीं देते।
              अनेक बार तो ऐसा भी होता है, कि अपने खून के रिश्तेदार लोग, सहयोग देना तो दूर, बल्कि विरोध करते हैं। मारपीट करते हैं। यहां तक कि कभी-कभी तो गोली मारकर हत्या तक कर देते हैं। वही लोग जो हमारे खून के रिश्तेदार थे, उन्होंने हमारे साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया? कारण वही है कि उनके साथ हमारे विचार और गुण कर्म स्वभाव का तालमेल नहीं बना।
          इसलिए सार यह हुआ कि आप किसी भी अच्छे बुद्धिमान धार्मिक सदाचारी व्यक्ति के साथ, यदि अपना व्यवहार उत्तम रखें, आपके गुण कर्म  स्वभाव और विचार भी यदि उसके साथ मेल खा जाएँ, तो आप किसी भी अच्छे व्यक्ति से भरपूर सहयोग ले सकते हैं। इसके लिए कोई खून की रिश्तेदारी होना आवश्यक नहीं है। इस बात के उदाहरण आपको अपने आसपास बहुत से मिल जाएंगे। आपने ऐसे मित्र सहयोगी, अपने जीवन में कुछ न कुछ जरूर देखें होंगे।
     यदि इतिहास की बात करें, तो श्रीराम जी ने सुग्रीव को सहयोग दिया। सुग्रीव ने श्रीराम जी को सहयोग दिया। उनके विचार एवं गुण कर्म स्वभाव मेल खाते थे। इसलिए दोनों ने एक दूसरे को सहयोग दिया।
      *तो इसी सिद्धांत पर आप भी अपने जीवन को चलाइए। अपना व्यवहार उत्तम बनाइए। अपने विचार तथा गुण कर्म स्वभाव को, अच्छे लोगों के साथ मिलाइए। दुष्ट लोगों से दूर रहिए। आप बहुत आनंद से जिएंगे*
    -- *स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक।*

Comments