हिंदू धर्म में तुलसी पूजन का बड़ा महत्त्व है। ऐसा माना जाता है की
तुलसी में साक्षात लक्ष्मी जी का निवास है। महिलायें तुलसी विवाह भी करती
हैं जो की कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को होती है। ऐसी मान्यता है की
तुलसी जी का विवाह करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और
जीवन में खुशहाली आती है। आपको यह जान कर आशचर्यता होगी की भगवान विष्णु को
तुलसी माता से शालिग्राम के रूप में शादी करनी पड़ी थी। परंतु क्यों?
यह जानने के लिए आपको यह पौराणिक कथा अवश्य पढ़नी चाहिए।
वृंदा नाम की एक स्त्री थी, जिसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। वृंदा
विष्णु जी की बहुत बड़ी भक्त थी। उसका विवाह राक्षस कुल में दानव राजा जलंधर
से करा दिया गया। इस राक्षस ने चारों तरफ हाहाकार मचा कर रखा था। ये बेहद
ही वीर और पराक्रमी था। राक्षस की वीरता का रहस्य उसकी पत्नी थी जो
पतिव्रता धर्म का पालन करती थी। पत्नी के व्रत के प्रभाव से ही वो राक्षस
इतना वीर बन पाया था। ऐसे में उसके अत्याचार से परेशान होकर देवता लोग
भगवान विष्णु के पास गए। सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने
वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय कर लिया।
भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वे वृंदा के महल में पहुंच
गए। जैसे ही वृंदा की नज़र अपने पति पर पड़ी वे पूजा में से तुरंत उठ गई और
उसने जलंधर का रूप धारण किए भगवान विष्णु के चरण छू लिए। वृंदा का पति
जालंधर युद्ध कर रहा था, लेकिन जैसे ही वृंदा का सतीत्व नष्ट हुआ उसके पति
का कटा हुआ सिर उसके आंगन में आ गिरा। वृंदा सोचने लगीं कि यदि सामने कटा
पड़ा सिर मेरे पति का है, तो जो व्यक्ति मेरे सामने खड़ा है, यह कौन है?
वृंदा के पूछने पर भगवान विष्णु अपने वास्तविक रूप में आ गए। वृंदा अपने
साथ हुए इस छल से बहुत आहत हुई और उसने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि
“आप पत्थर के बन जाओ”। वृंदा के श्राप से विष्णु तुरंत पत्थर के बन गए। ये
देखकर लक्ष्मी जी ने वृंदा से यह प्रार्थना की वो विष्णु जी को अपने श्राप
से मुक्त करे।
माता लक्ष्मी के अनुरोध पर वृंदा ने श्राप विमोचन किया और स्वयं अपने
पति का कटा सिर लेकर सती हो गई। वृंदा की राख से एक पौधा निकला, जिसे भगवान
विष्णु ने तुलसी के पौधे का नाम दिया और कहा कि “शालिग्राम” नाम से मेरा
एक रूप इस पत्थर में रहेगा, जिसकी पूजा तुलसी के साथ ही की जाएगी। भगवान
विष्णु ने कहा कि मेरी पूजा में तुलसी का उपयोग जरूरी होगा। कहा जाता है कि
तब से कार्तिक मास में तुलसी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाने लगा।
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