चिन्मस्तिका देवी: Devi Chhinnamasta

  चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप अद्भुत और असामान्य है। उनके इस अद्वितीय रूप का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। मस्तक का स्वयं बलिदान: देवी ने अपने ही मस्तक को काटकर उसे हाथ में थाम रखा है। उनके गले से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतीक है। तीन रक्त की धाराएँ: पहली धारा देवी के मुख में जा रही है। अन्य दो धाराएँ उनके दोनों सहायकों या दासियों के मुख में जा रही हैं, जो तृप्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। कमल पर खड़े रहना: देवी एक विशाल कमल के फूल पर खड़ी हैं, जो ब्रह्मांडीय चेतना और शुद्धता का प्रतीक है। शिव पर खड़े रहना: देवी अपने चरणों से भगवान शिव के शरीर पर खड़ी हैं, जो जड़ता (passivity) और शक्ति (energy) के सामंजस्य को दर्शाता है। आभूषण और माला: उनके गले में नरमुंडों की माला और शरीर पर साधारण आभूषण हैं, जो जीवन की क्षणभंगुरता और मृत्यु की अपरिहार्यता को दर्शाते हैं। दासी रूप में संगिनी: उनके दोनों ओर उनकी सहायक दासियाँ हैं, जो उनके दिव्य बल और शक्ति में सहयोगी हैं। पौराणिक कथा और महत्व चिन्मस्तिका देवी के इस र...

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वर्ल्ड पार्किंसंस डे पर आयोजित हुई वॉकाथॉन

 वर्ल्ड पार्किंसंस डे पर आयोजित हुई वॉकाथॉन

 





मोहाली, 9 अप्रैल, 2023: वर्ल्ड पार्किंसंस डे पर सिल्वी पार्क, मोहाली से पार्किंसंस जागरूकता वॉकथॉन का आयोजन किया गया। जो कि सुबह 6 बजे शुरू हुई। यह वॉकाथॉन 5 किलोमीटर की थी जिसमें पार्किंसंस रोग के रोगियों के परिवार और देखभाल करने वालों, कई धावकों - दीप शेरगिल - स्पोर्टस एक्टिविस्ट, श्री अमर चौहान, जिन्होंने भारत और विदेशों में कई स्वर्ण पदक जीते हैं, ने तथा सर्व ह्यूमैनिटी सर्व गॉड आर्गेनाईजेशन के व्हीलचेयर रनर ने भाग लिया। अप्रैल महीने को पूरा विश्व में पार्किंसंस जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है।

वॉकथॉन की आयोजक डॉ जसलवलीन कौर सिद्धू, जो कि न्यूरोलॉजिस्ट और पंजाब की पहली पार्किंसंस रोग और मूवमेंट डिसऑर्डर एक्सपर्ट हैं, ने इस अवसर पर कहा कि पार्किंसंस रोग मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं के नुकसान के साथ एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है, जो डोपामाइन नामक एक रसायन का उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं। गतिविधियों का धीमा होना, शरीर में अकड़न, हाथ या पैर कांपना और चलते समय संतुलन खो देना इसका सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है। स्मॉल हैंडराइटिंग, सूंघने की क्षमता में कमी, मूड में बदलाव, नींद में गड़बड़ी और कब्ज इसके कुछ अन्य लक्षण हैं।

डॉ जसलवलीन ने इस बात पर बल देकर कहा कि इस पर जागरूकता बढ़ाना हमारी पीढ़ी की जिम्मेदारी है क्योंकि पार्किंसंस रोग का अक्सर उम्र बढ़ने की प्रक्रिया के साथ गलत निदान किया जाता है और इसलिए उपचार अक्सर छूट जाता है या देरी हो जाती है। जागरूकता बढ़ाकर हम इसका जल्द पता लगा सकते हैं और सही उपचार की पेशकश कर जीवन की बेहतर गुणवत्ता का ला सकते हैं।

वॉकथॉन के आयोजकों को आप स्टूडेंट विंग के प्रेसिडेंट परमिंदर सिंह जायसवाल द्वारा भी प्रोत्साहित किया गया। वॉकथॉन सुबह 9 बजे सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। डॉ. जसलवलीन सिद्धू ने इस मौके पर कहा कि पार्किंसंस रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इसे प्रत्येक वार्षिक कार्यक्रम बनाया जायेगा।

डॉ जसलवलीन सिद्धू एनएचएनएन, लंदन, यूके और नेशनल न्यूरोसाइंस इंस्टीट्यूट, सिंगापुर से पार्किंसंस रोग और मूवमेंट डिस्आर्डर में स्पेशल ट्रेनिंग के साथ एक न्यूरोलॉजिस्ट हैं। वह मोहाली में प्रैक्टिसिंग हैं और पार्किंसंस रोग में उपलब्ध सबसे उन्नत उपचार विकल्पों की पेशकश कर रही हैं।

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