चिन्मस्तिका देवी: Devi Chhinnamasta

  चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप अद्भुत और असामान्य है। उनके इस अद्वितीय रूप का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। मस्तक का स्वयं बलिदान: देवी ने अपने ही मस्तक को काटकर उसे हाथ में थाम रखा है। उनके गले से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतीक है। तीन रक्त की धाराएँ: पहली धारा देवी के मुख में जा रही है। अन्य दो धाराएँ उनके दोनों सहायकों या दासियों के मुख में जा रही हैं, जो तृप्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। कमल पर खड़े रहना: देवी एक विशाल कमल के फूल पर खड़ी हैं, जो ब्रह्मांडीय चेतना और शुद्धता का प्रतीक है। शिव पर खड़े रहना: देवी अपने चरणों से भगवान शिव के शरीर पर खड़ी हैं, जो जड़ता (passivity) और शक्ति (energy) के सामंजस्य को दर्शाता है। आभूषण और माला: उनके गले में नरमुंडों की माला और शरीर पर साधारण आभूषण हैं, जो जीवन की क्षणभंगुरता और मृत्यु की अपरिहार्यता को दर्शाते हैं। दासी रूप में संगिनी: उनके दोनों ओर उनकी सहायक दासियाँ हैं, जो उनके दिव्य बल और शक्ति में सहयोगी हैं। पौराणिक कथा और महत्व चिन्मस्तिका देवी के इस र...

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जीवन शैली में बदलाव लाने से लीवर की बीमारी को रोका जा सकता है: डॉ. राकेश कोछड़, World Liver Day

वर्ल्ड लीवर डे: World Liver Day

जीवन शैली में बदलाव लाने से लीवर की बीमारी को रोका जा सकता है: डॉ. राकेश कोछड़


मोहाली, 18 अप्रैल, 2023: लीवर मानव शरीर का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे जटिल अंग है। यह मानव शरीर के सामान्य कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है और पाचन, प्रतिरक्षा और कई चयापचय कार्यों में सहायता करता है। लीवर और इससे जुड़े विकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 19 अप्रैल को वर्ल्ड लीवर डे मनाया जाता है। इस वर्ष के आयोजन का विषय है "सतर्क रहें, नियमित लिवर चेक-अप करें, फैटी लिवर किसी को भी प्रभावित कर सकता है।"

फोर्टिस हॉस्पिटल मोहाली के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोबिलरी साइंसेज के डायरेक्टर डॉ. राकेश कोछड़ ने एक एडवाइजरी में लीवर की बीमारियों के सामान्य लक्षण, कारण, प्रबंधन और रोकथाम के बारे में बताया है।

लीवर रोगों के सबसे सामान्य प्रकार पर चर्चा करते हुए डॉ. राकेश कोछड ने कहा कि संक्रामक हेपेटाइटिस, जिसमें वायरल हेपेटाइटिस, ए, बी, सी, डी और ई और अन्य संक्रमण जैसे अमीबियासिस और ट्यूबरक्लोसिस शामिल हैं। शराब से  यकृत रोग, यह एक और रोकी जा सकने वाली बीमारी है जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह शराब की मात्रा और अवधि से जुड़ा हुआ है। अल्कोहलिक हेपेटाइटिस और सिरोसिस के मामले समय के साथ बढ़े हैं। फैटी लिवर या नॉन-अल्कोहल फैटी लीवर रोग जो कि भारत में 25-35% समृद्ध आबादी को प्रभावित करता है और क्रोनिक लीवर रोग का एक प्रमुख कारण बनकर उभरा है। यह मोटापे और मधुमेह से संबंधित है लेकिन सामान्य वजन वाले व्यक्तियों में भी होता है। “भारत में मोटापे की समस्या के बीच और दुनिया की डायबिटीज कैपिटल होने के साथ, यह अनुमान लगाया गया है नॉन- अल्कोहल फैटी लीवर रोग आने वाले वर्षों में एक अहम स्थान लेगा।

डॉ कोछड़ ने कहा कि दवाओं से प्रभावित लीवर रोग: कुछ एंटीबायोटिक्स, एंटी-ट्यूबरकुलर, एंटी-एपिलेप्टिक्स और एंटी-कैंसर दवाओं सहित कई दवाएं लीवर को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कई हर्बल और आयुर्वेदिक दवाओं को लिवर रोग के कारण के रूप में तेजी से पहचाना जा रहा है।

उन्होंने कहा कि सिरोसिस उपरोक्त कई स्थितियों के लिए लीवर की फाइब्रॉटिक प्रतिक्रिया है और इससे हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा हो सकता है।

डॉ.  कोछड ने कहा कि लिवर की बीमारी वाले मरीजों में भूख न लगना, मतली, उल्टी, बुखार, सिरदर्द, सुस्ती, गहरे रंग का पेशाब, पीलिया, पेट में दर्द और पैरों में सूजन जैसे सामान्य लक्षण दिखाई देते हैं।

उन्होंने बताया कि सरल ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड द्वारा लीवर की बीमारियों का निदान किया जा सकता है। इनमें से कई रोग रोके जा सकते हैं जैसे हेपेटाइटिस ए और बी और अल्कोहल लीवर की बीमारी। आहार नियंत्रण, व्यायाम और वजन नियंत्रण के साथ जीवनशैली में बदलाव नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग को रोक सकता है। समय पर और विशेषज्ञ सलाह लेना महत्वपूर्ण है।

डॉ कोछड ने कहा कि जीवनशैली में कुछ बदलाव लाकर लीवर की बीमारी से बचा जा सकता है। “शराब पीने से बचना चाहिए क्योंकि शराब शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है। अपनी दिनचर्या में शारीरिक गतिविधियों को शामिल करें क्योंकि इससे शरीर फिट रहता है। अपने वजन को नियंत्रण में रखें और संतुलित आहार का सेवन सुनिश्चित करें। चीनी आधारित पेय जैसे जूस, सॉफ्ट ड्रिंक, स्पोर्ट्स ड्रिंक आदि से बचने के अलावा चीनी और नमक का सेवन भी सीमित करना चाहिए।

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