चिन्मस्तिका देवी: Devi Chhinnamasta

  चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप चिन्मस्तिका देवी का स्वरूप अद्भुत और असामान्य है। उनके इस अद्वितीय रूप का गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। मस्तक का स्वयं बलिदान: देवी ने अपने ही मस्तक को काटकर उसे हाथ में थाम रखा है। उनके गले से तीन धाराओं में रक्त प्रवाहित हो रहा है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतीक है। तीन रक्त की धाराएँ: पहली धारा देवी के मुख में जा रही है। अन्य दो धाराएँ उनके दोनों सहायकों या दासियों के मुख में जा रही हैं, जो तृप्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। कमल पर खड़े रहना: देवी एक विशाल कमल के फूल पर खड़ी हैं, जो ब्रह्मांडीय चेतना और शुद्धता का प्रतीक है। शिव पर खड़े रहना: देवी अपने चरणों से भगवान शिव के शरीर पर खड़ी हैं, जो जड़ता (passivity) और शक्ति (energy) के सामंजस्य को दर्शाता है। आभूषण और माला: उनके गले में नरमुंडों की माला और शरीर पर साधारण आभूषण हैं, जो जीवन की क्षणभंगुरता और मृत्यु की अपरिहार्यता को दर्शाते हैं। दासी रूप में संगिनी: उनके दोनों ओर उनकी सहायक दासियाँ हैं, जो उनके दिव्य बल और शक्ति में सहयोगी हैं। पौराणिक कथा और महत्व चिन्मस्तिका देवी के इस र...

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भगत कबीर दास जी के दोहे:

 भगत कबीर दास जी के दोहे


 


  1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोए। जो मन खोजा अपना, तो मुझसे बुरा न कोए।
  2. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
  3. दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय। जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय।
  4. कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और। हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं कोय।
  5. साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाए। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाए।
  6. जैसे कुंभकरण सोवत है, देखि प्रयास जोड़ि। तैसे ही घर सुत मन बसत है, राम की कृपा बिना बिना।
  7. कबीरा ते संसार नहीं, आपरा आप भांति। कहत कबीर ये सब के, विचरत भगत नहीं।
  8. सतगुरु की संगति सब को, करता भला होय। मन के कुंडलिनी छुए, गुरु की यही सोय।
  9. बालक के काम बिगड़े, जब गुरु की जान। गुरु बिन गति नहीं कोई, जानत सब आप जान।
  10. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।

यह कुछ भगत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे हैं। उनके दोहों में जीवन के मूल्यों, साधना की महत्वपूर्णता, और भक्ति के सिद्धांतों का विवेक प्रकट होता है।

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