'रज़ाकार - साइलेंट जेनोसाइड ऑफ हैदराबाद' : 55वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) में : #Razakar – Silent Genocide of Hyderabad at the 55th International Film Festival of India

इतिहास ने वैश्विक मंच पर छाप छोड़ी: 'रज़ाकार - साइलेंट जेनोसाइड ऑफ हैदराबाद' के लिए बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर के लिए नामांकित " यटा सत्यनारायण"   55वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज हुई है। प्रसिद्ध निर्देशक यटा सत्यनारायण को उनकी पहली फिल्म 'रज़ाकार - साइलेंट जेनोसाइड ऑफ हैदराबाद' के लिए बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर के लिए नामांकित किया गया है। फिल्म की कहानी और महत्व 'रज़ाकार - साइलेंट जेनोसाइड ऑफ हैदराबाद' भारतीय इतिहास के एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण अध्याय पर आधारित है। फिल्म ने हैदराबाद के विभाजन और उसके दौरान हुई हिंसाओं को सजीव रूप से चित्रित किया है। सत्यनारायण ने अपनी उत्कृष्ट निर्देशन क्षमता के जरिए इस ऐतिहासिक घटना को एक वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया है। यटा सत्यनारायण की प्रतिक्रिया नामांकन पर अपनी खुशी व्यक्त करते हुए यटा सत्यनारायण ने कहा, "यह मेरे लिए और मेरी पूरी टीम के लिए गर्व का क्षण है। 'रज़ाकार' सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह हमारी ऐतिहासिक सच्चाइयों को दुनिया के सामने लाने का एक प्रयास है। मुझे ख

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सिराज मोहम्मद खान: 22 साल बाद वतन (पाकिस्तान ) लौटे, पर परिवार ने कहा काफिर

 सिराज मोहम्मद खान: 22 साल बाद वतन लौटे, पर परिवार ने कहा काफिर



पाकिस्तान के सिराज मोहम्मद खान की ज़िंदगी की कहानी एक दुखद मोड़ लेती है, जब वो महज 10 साल की उम्र में एक ग़लत ट्रेन में चढ़कर भारत पहुंच गए। यह घटना 1996 की है, जब सिराज, जो उस समय एक बच्चे थे, अनजाने में अपने वतन से दूर भारत आ गए। सिराज का परिवार इस बारे में कुछ भी नहीं जानता था, और उन्हें ढूंढने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं।

भारत में 22 साल का सफर

भारत पहुंचने के बाद सिराज ने अपने आप को नए माहौल में ढाल लिया। उन्होंने मुंबई में ज़िंदगी की शुरुआत की और वहां कई सालों तक रहे। भारत में रहकर उन्होंने साजिदा नाम की एक महिला से निकाह किया और अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत की। सिराज का मानना था कि उन्होंने अब अपनी नई पहचान और जीवन बना लिया है। लेकिन उनके दिल में अपने वतन पाकिस्तान लौटने की ख्वाहिश हमेशा जिंदा रही।

पाकिस्तान वापसी और परिवार का अस्वीकार

2018 में, करीब 22 साल बाद, सिराज पाकिस्तान लौटने में सफल रहे। लेकिन जिस परिवार से मिलने की उम्मीदें उन्होंने संजोई थीं, वही परिवार अब उनके लिए अनजान बन गया था। सिराज का परिवार उन्हें अपना नहीं पाया। उनकी भारतीय पत्नी के साथ निकाह और भारत में बिताए गए वर्षों को लेकर परिवार ने उन्हें "काफिर" कहकर अस्वीकार कर दिया। परिवार ने उनसे यह उम्मीद की कि वह अपनी भारतीय पत्नी को छोड़ दें, लेकिन सिराज के लिए यह मुमकिन नहीं था, क्योंकि उनके लिए साजिदा उनका जीवनसाथी थीं।

आज का संघर्ष

सिराज के लिए यह एक कठिन दौर है। वह अपने परिवार के पास लौट तो आए, लेकिन उनका मन अब भी सुकून की तलाश में है। परिवार द्वारा उन्हें अस्वीकार किया जाना उनके लिए बहुत बड़ा सदमा है। छह साल बीत जाने के बाद भी, सिराज अपने परिवार के साथ खुश नहीं हैं। उनके परिवार की शर्तें उनके लिए अस्वीकार्य हैं, और इस वजह से वह आंतरिक संघर्ष और सामाजिक अस्वीकृति का सामना कर रहे हैं।

सिराज मोहम्मद खान की कहानी उस दर्दनाक हकीकत को बयां करती है, जो एक इंसान को अपनी पहचान, रिश्तों और वतन के बीच फंसे होने की स्थिति में ला देती है।

Source : https://x.com/

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