मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने न्याय की मूर्ति से आंखों की पट्टी और तलवार हटवाई

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  मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने न्याय की मूर्ति से आंखों की पट्टी और तलवार हटवाई   नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए न्याय की मूर्ति से आंखों की पट्टी और हाथ में पकड़ी तलवार को हटाने का सुझाव दिया। इस विचार के पीछे न्याय की निष्पक्षता और मानवीय दृष्टिकोण को प्रदर्शित करने की भावना है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का मानना है कि आंखों पर बंधी पट्टी से न्याय प्रक्रिया को सीमित और अंधा माना जाता है, जबकि न्याय में संवेदनशीलता और स्पष्ट दृष्टि की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही, उन्होंने न्याय की मूर्ति से तलवार हटाने की बात कही, जो शक्ति और दंड का प्रतीक मानी जाती है। उनका कहना है कि न्याय केवल दंडित करने का नहीं, बल्कि समाज में संतुलन और मानवता का प्रतीक होना चाहिए। उनका यह कदम न्याय व्यवस्था में नए सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश माना जा रहा है। इस फैसले के बाद न्यायिक व्यवस्था में निष्पक्षता, सहानुभूति और मानवता के मूल्यों को और अधिक प्रमुखता दी जाएगी।

गरबड़े का त्योहार: अंधेरे से उजाले की ओर जाने का संदेश देने वाला पर्व

 गरबड़े का त्योहार: अंधेरे से उजाले की ओर जाने का संदेश देने वाला पर्व


 



 

गरबड़े का त्योहार, जिसे ‘गरबड़े-गरबड़े पुन्यों की रात’ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय परंपरा का एक महत्वपूर्ण और धार्मिक उत्सव है। यह त्योहार अंधेरे से उजाले की ओर जाने का संदेश देता है और खासतौर पर बच्चों के लिए अत्यधिक प्रिय होता है। यह पर्व गांवों में सदियों से परंपरागत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है, लेकिन आज बदलते वक्त और आधुनिक जीवनशैली के चलते इसकी धूमधाम में कमी देखने को मिल रही है। फिर भी, गरबड़े का यह त्योहार अपनी मौलिकता और सादगी में अब भी बहुत से परिवारों में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

गरबड़े की परंपरा और महत्व

गरबड़े का त्योहार खासतौर पर बच्चों के लिए होता है, और इसकी तैयारियां कईं दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। परिवार के हर बच्चे के लिए कुम्हारों द्वारा मिट्टी से बने विशेष पात्र, जिन्हें "गरबड़ा" कहा जाता है, खरीदे जाते हैं। कुम्हार इन पात्रों को विभिन्न डिजाइनों में सजाते हैं, ताकि बच्चों को यह और भी आकर्षक लगे। गरबड़े का त्योहार एक तरह से बच्चों के आनंद और खेल-कूद का प्रतीक भी है, जहां वे इस त्योहार के दिन गांव की गलियों में घूमते हैं और घर-घर जाकर गीत गाते हैं।

पूजा और अभिभावकों की कामना

इस त्योहार की सबसे खास बात यह है कि अभिभावक अपने बच्चों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना के लिए गरबड़ों की पूजा-अर्चना करते हैं। शाम को, घरों में गरबड़े जलाए जाते हैं, और अभिभावक अपने बच्चों के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। इस पूजा में विशेष ध्यान दिया जाता है कि घर के हर बच्चे के लिए गरबड़ा मौजूद हो, और पूजा के बाद उन्हें इस गरबड़े के साथ गलियों में भेजा जाता है।

त्योहार का आयोजन और उत्सव

गरबड़े के त्योहार वाले दिन, गांव के बच्चे दीप जलाए हुए गरबड़े लेकर गांव की गलियों में घूमते हैं। वे एक विशेष नारा लगाते हैं – "गरबड़े-गरबड़े पुन्यों की रात"। यह नारा बच्चों में उत्साह और उल्लास भर देता है, और वे समूहों में घर-घर जाकर दीप जलाते हुए इस त्योहार का आनंद लेते हैं। इस दौरान लोग बच्चों को यथासामर्थ्य पैसे या अनाज देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में, नकद पैसे की बजाय बच्चों को अनाज दिया जाता है, जो इस त्योहार की सादगी और ग्रामीण संस्कृति को दर्शाता है।

वर्तमान में गरबड़े का त्योहार

हालांकि, पहले यह त्योहार गांव के गलियारों में बच्चों के बड़े-बड़े टोले और उनकी किलकारियों से गूंजता था, लेकिन अब समय के साथ-साथ इसकी धूमधाम में कमी आई है। बहुत से परिवार केवल घरों में गरबड़े जलाकर पूजा-अर्चना की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। कई जगहों पर बच्चों के टोले गांव की गलियों में बहुत कम देखने को मिलते हैं, जो इस त्योहार की पारंपरिक धरोहर में गिरावट का संकेत है।

गरबड़े का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

गरबड़े का त्योहार न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार बच्चों को हमारी पुरानी परंपराओं और संस्कृति से जोड़ने का एक माध्यम है। गरबड़े के माध्यम से बच्चे सीखते हैं कि किस प्रकार हमारे पूर्वज अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ हर छोटे-बड़े त्योहार को मनाते थे, और किस तरह से इन उत्सवों के माध्यम से समाज में आपसी प्रेम और सद्भावना को बढ़ावा दिया जाता था।

निष्कर्ष

गरबड़े का त्योहार, जो अंधेरे से उजाले की ओर जाने का संदेश देता है, आज भी अपनी परंपरा और श्रद्धा के कारण जीवित है। हालांकि, इसके उल्लास और रौनक में गिरावट आई है, फिर भी यह त्योहार बच्चों की खुशियों और समाज में एकजुटता का प्रतीक बना हुआ है। इस त्योहार की सादगी और धार्मिकता इसे विशेष बनाती है, और आज के आधुनिक युग में भी यह हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर के रूप में देखा जाता है।

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