छठ पूजा की कथा, व्रत, और विधि : chatt puja ki katha, vart, vidthi

छठ पूजा की कथा, व्रत, और विधि छठ पूजा एक प्राचीन और महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है, जिसे विशेषकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मईया को समर्पित होता है और यह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस पर्व में चार दिनों तक व्रत, उपवास और कठोर नियमों का पालन करते हुए सूर्य देवता की आराधना की जाती है, जिससे व्रतियों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। छठ पूजा की पौराणिक कथा छठ पूजा से जुड़ी कई कथाएं हैं, जिनमें से प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं: राम-सीता के प्रसंग से जुड़ी कथा ऐसा माना जाता है कि जब भगवान रामचंद्र वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने सीता माता के साथ मिलकर राज्य की सुख-शांति के लिए सूर्य देवता की पूजा की। उन्होंने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन व्रत रखा और सप्तमी के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया। इसके बाद से यह परंपरा छठ पूजा के रूप में प्रचलित हो गई। कर्ण की कथा महाभारत के अनुसार, सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन सूर्य देवता की आराधना करते थे। वह सुबह के समय कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य

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वराह अवतार की कथा: पृथ्वी को बचाने के लिए धारण किया था वराह अवतार

वराह अवतार की कथा: पृथ्वी को बचाने के लिए धारण किया था वराह अवतार  



भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा पौराणिक हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है। यह भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों (दशावतार) में से तीसरा अवतार है, जो उन्होंने पृथ्वी को बचाने के लिए धारण किया था। वराह अवतार की कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु जब भी सृष्टि पर संकट आता है, तब धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अवतार धारण करते हैं।

वराह अवतार की कथा:

सृष्टि के प्रारंभ में हिरण्याक्ष नामक एक अत्यंत शक्तिशाली असुर ने अपनी तपस्या और शक्ति से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। हिरण्याक्ष असुर, ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त करना चाहता था, लेकिन ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान नहीं दिया। फिर भी, हिरण्याक्ष अपनी शक्तियों के कारण घमंड में आ गया और उसने अपने अत्याचार से पूरी सृष्टि को त्रस्त कर दिया।

एक दिन, हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए पृथ्वी को अपहरण कर लिया और उसे लेकर समुद्र की गहराई में चला गया। हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को पानी में डुबो दिया, जिससे सभी प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया। यह देख, सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे पृथ्वी को इस संकट से बचाएं।

भगवान विष्णु ने देवताओं की पुकार सुनकर वराह (सूअर) का रूप धारण किया। उनका यह अवतार एक विशाल जंगली सूअर के रूप में था, जो अत्यंत बलशाली और तेजस्वी था। भगवान विष्णु वराह रूप में समुद्र में कूद पड़े और गहराई तक जाकर पृथ्वी को ढूंढ निकाला। उन्होंने अपने विशाल दांतों से पृथ्वी को उठाया और उसे पानी से बाहर निकालने लगे।

जब हिरण्याक्ष को यह पता चला कि भगवान विष्णु ने पृथ्वी को बचाने का प्रयास किया है, तो वह उनसे युद्ध करने आ गया। भगवान विष्णु और हिरण्याक्ष के बीच भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला, लेकिन अंत में भगवान विष्णु ने अपने वराह रूप से हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को सुरक्षित रूप से जल से बाहर निकाल कर पुनः अपने स्थान पर स्थापित किया।

पृथ्वी की स्थापना:

भगवान विष्णु ने अपने वराह अवतार में पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर उसे जल से बाहर निकालकर आकाश में स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने पृथ्वी को उसकी सामान्य स्थिति में लौटा दिया और समस्त प्राणियों को फिर से जीवन जीने का अवसर प्रदान किया। यह घटना सृष्टि के संतुलन को पुनर्स्थापित करने की महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

शिक्षा:

वराह अवतार की कथा हमें यह सिखाती है कि जब भी अधर्म और अन्याय का बोलबाला होता है, भगवान विष्णु अवतार लेकर सत्य और धर्म की रक्षा के लिए आते हैं। यह कथा हमें यह भी बताती है कि भगवान विष्णु हमेशा अपने भक्तों और धरती की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं।

भगवान विष्णु का यह वराह अवतार उनके अनंत करुणा और पराक्रम का प्रतीक है, जो धर्म और सृष्टि की रक्षा के लिए हर समय तैयार रहते हैं।

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